রদ্দুরের মজা

গাছের ডাল গুলো কেটে দিয়ে গেল ওরা।
খুব নাকি বেড়ে ওঠেছিল,
রাস্তার ওপরে প্রসারিত হয়ার
স্পর্ধা দেখিয়েছিল।
মানুষের তৈরি জগতে ঢুকে পড়েছিল।
ট্রাফিক আলো ঢেকে দিয়ে
জান চলাচলে বিঘ্ন সৃষ্টি করছিল।
কেবল টেলিভিশনের তারের ওপর প্রায়ই মেজাজ দেখাচ্ছিল।
এত স্পর্ধা
মানুষ সজ্জ্ করতে পারে নাকি?
মানুষের আদেশ ছাড়াই
গাছটা কেন বেড়ে ওঠল?
তাই কেটে ফেলেছে।
রাস্তার ওপর বাড়ান ডাল-পালা
বেহিসাবি ছেটে ফেলেছে।

আজকে,
তাই রোদ্দুরের ভারি মজা।
ঝাঁকে- ঝাঁকে রদ্দুর
ধেয়ে আসে বীর বিক্রমে,
বিঁধে জায় সারা অংগে;
জেমন অর্জুনের গান্ডীব থেকে নিক্ষেপ করা হাজার-হাজার তীর
দিয়েছিল ভিস্মকে সর-সয্যা।

রদ্দুরের আঘাতে জর্জরিত হয়ে
জিভ বের করে, ধুঁকতে-ধুঁকতে,
শুয়ে থাকে কুকুর টা।
আর অপেক্ষায়ে বেঁচে থাকে মানুষ।
চোখ খোঁজে নীল আকাশে,
অল্প একটু মেঘের আভাস।

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Author: gdutta17

Born in the year 1968, my childhood was spent amidst the beautiful scenic landscape of a small town in India, Ranchi. Though an engineer by qualification, reading, writing and cooking are my passions. Another thing that I am passionate about is my country, India. As they say, a lifetime is probably not enough to explore the whole of India. Currently based in Kolkata, I can be reached at gdutta17@gmail.com.

8 thoughts on “রদ্দুরের মজা”

  1. अनुरोध ….
    कृपया हिंदी या अंग्रेजी में अनुवाद
    भी दे तो समझने में आसानी होगी
    धन्यवाद

    Like

      1. मैंने कविता का हिंदी अनुवाद करने की कोशिश की है। यह word-to-word अनुवाद नही है, बल्कि कविता का मूल भाव का अनुवाद है। कुछ गलतियां हो शायद, उसे कृपया अनदेखा करके पढ़िएगा।

        कुछ लोग आकर‌ पेड़ की डाली काट कर चले गए।
        बहुत बड़ा हो गया था न पेड़!
        रास्ते के उपर चले आने कि हिमाकत दिखाई थी।
        इंसान की दुनिया में अनाधिकार प्रवेश कर गया था।
        ट्राफिक लाइट्स के साथ लुका-छिपी खेलते हुए
        राह चलते गाड़ियो के लिये मुसीबत पैदा कर रहा था।
        केबल टीवी के तारों पर बीच बीच में बेवजह रौब जमाया करता था।
        इन बातों से आदमी को गुस्सा आ रहा था।
        आखिर पेड़ की इतनी हिम्मत
        कि बिना उसका सम्मति लिये ही
        वह स्वयं बढ़ा जा रहा था?
        मानव जाति के उत्कृष्ट मनोभाव ने
        इस बात को असहनीय बना दिया था।
        अतः पेड़ को तो सज़ा मिलनी ही थी।
        उसे कटना ही था!

        आज धूप की खुशी का कोई ठिकाना न था।
        बेआब्रू धरती पर धूप इस कदर बरसा,
        जैसे अर्जुन का गांडीव से सहस्र तीर निकलकर
        पितामह भीष्म को तीरों की सेज पर लिटा दिया था।

        धूप की मार से बेहाल कुत्ता,
        जीभ निकाल कर,
        लेटकर हांफता रहता है।
        और आदमी इन्तज़ार का क्षन गुजारता है।
        उसकि आंखे खोजती है,
        नीला अम्बर में विचरन करते हुए,
        कुछ टुकरे बादल के।

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      2. आदरणीय ,
        आपने हमारी भावना का ख्याल रखते हुए
        जो अनुवाद किया है उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद
        🙏🙂🙏

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